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Surajbhikyonbandhak

सूरज भी क्यों बंधक

वर्ष २०१५ में प्रकाशित सूरज भी क्यों बंधक शिवानंद सिंह सहयोगी का पहला नवगीत संग्रह है। इसमें १२८ पृष्ठ और १०६ नवगीत हैं। मूल्य है २०० रुपये और प्रकाशक हैं कोणार्क प्रकाशन दिल्ली। आइएसबीएन : 979-81-920238-7-8


उपभोक्तावादी प्रवृत्ति, बाजारवादी संस्कृति एवं प्रतियोगितावादी वृत्ति से किसी न किसी रूप में रचनाकार प्रभावित हुआ है। वैश्विक स्तर पर द्रुतगति से परिवर्तन हो रहे हैं। साहित्य और साहित्यकार भी  सम्प्रति भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया में अपने को अछूता नहीं रख सका है जिसके परिणाम स्वरूप शार्टकट और द्रुतगति से लेखन हो रहा है। रचनाधर्मिता का निर्वहन प्रतियोगिता-जगत में उत्पादन पर दृष्टि केन्द्रित करते हुए किया जा रहा है। कोई भी रचनाकार किसी भी विधा या किसी भी काव्य रूप में पीछे रहना नहीं चाहता। यही कारण है कि गीतकारों ने भी नवगीत के प्रति अपनी काव्य-प्रतिभा का दिग्दर्शन किया है जिसकी परिणति में शिवानन्द सिंह “सहयोगी” का नवगीत संग्रह “सूरज भी क्यों बन्धक” प्रकाशित है।   इस कृति में एक सौ छ: रचनायें हैं, जिनमें बहुविषयक भावानुभूति की अभिव्यंजना काम्य सिद्ध है।

बाह्य सूत्र[]

संग्रह और संकलन में डॉ. पशुपतिनाथ उपाध्याय की समीक्षा