वर्ष २०१७ में प्रकाशित लौट आया मधुमास शशि पाधा का पहला नवगीत संग्रह है। इसमें १२८ पृष्ठ और ७० गीत हैं। मूल्य है २५० रुपये। प्रकाशक हैं अयन प्रकाशन, दिल्ली ।
प्रस्तुत पुस्तक कवयित्री का चौथा काव्य संग्रह है। इससे पहले वे पहली किरण, मानस मंथन और अनंत की ओर शीर्षक से तीन काव्य संग्रह पाठकों के सुपुर्द कर चुकी हैं। प्रस्तुत संग्रह में सत्तर गीतों ने स्थान बनाया है। इनमें नए सरोकारों से जुड़े, नई भाषा और बिंब प्रयोग से बुने गए नवगीत भी शामिल हैं। इसे मैं कवयित्री का अपने जीवन का चौथा फेरा कहूँगी। पिछले तीन फेरों में वे अनुगामिनी बनी सौंपे गए अनुभवों को अपने अनुभवों में समाहित करते हुए आगे बढ़ रहीं थीं। जबकि अब चौथे फेरे में आगे बढऩे की जिम्मेदारी उनकी है। अब वे अपनी निज अनुभूतियों से जीवन को देख रही हैं और इन दृश्यों को अपने साठोत्तरी नायक को नवल मधुमास की सौगात के रूप में सौंपती जा रहीं हैं। उनके पास केवल शब्द ही नहीं स्वर और ताल भी हैं। ये सब निधियाँ कवयित्री ने प्रकृति से ही पाईं हैं। यहाँ स्त्री ही प्रकृति है और प्रकृति ही नायिका है। वही धूप की ओढऩी ओढ़ती है, वही तारों की वेणी सजाती है, पीली चोली में सजती है, तो वही माँग पर चंदा टाँकती है।