२०१५ में प्रकाशित रे मन गीत लिखूँ मैं कैसे शीला पाँडे का पहला नवगीत संग्रह है। ८८ पृष्ठों के इस संग्रह का मूल्य है ८० रुपये और इसके प्रकाशक हैं- बोधि प्रकाशन, जयपुर
शीला पाँडे की सद्य प्रकाशित कृति "रे मन गीत लिखूँ मैं कैसे" बहुत चर्चित हुई है। प्रश्न यह नहीं है कि वे किस स्तर की रचनाकार हैं बल्कि यह सराहनीय है कि नयी कविता का मोह त्याग कर गीत-धर्मिता के लिये जागरुक हुई हैं। उसी प्रकार उनके संग्रह को भी विद्वानों, ने गम्भीरता से लिया है और गीत-विधा में पदार्पण का स्वागत किया है। पहले ही संग्रह में उनकी रचनायें पढ़ कर यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि यह उनकी प्रथम कृति है। उनके गीतों का फलक बहुत व्यापक है जिसमें विविधता है और उनकी संघर्षशील प्रवृत्ति जिसमें जिजीविषा की लगन एवं आत्मविश्वास की झलक मिलती है जिससे उनके उज्जवल भविष्य का संज्ञान होता है। भारतीय संस्कृति की लयात्मकता जिसमें लोकभाषा संस्कार-गीतों एवं पर्वों-उत्सवों में गाये जाने वाले गीतों का प्रभाव उन पर भी पर्याप्त पड़ा है। इसके साथ ही भारतीय संस्कृति आस्था एवं विश्वास की भी परिचायक है और इसी संदर्भ में रीति का पालन करते हुए पाँडे जी ने सर्वप्रथम प्रस्तुत संग्रह में वाणी-वन्दना को स्थान दिया है जिसमें उनकी आकांक्षाओं का ज्ञान होता है
बाह्य सूत्र[]
- रे मन गीत लिखूँ मैं कैसे संग्रह और संकलन में मधुकर अष्ठाना की समीक्षा