१९९४ में प्रकाशित नवगीत संग्रह - मृगजल के गुंतारे, रचनाकार- शशिकांत गीते का पहला नवगीत संग्रह है। इसके प्रकाशक हैं- ज्ञान साहित्य घर, जबलपुर, मूल्य है , पृष्ठ- ५७, समीक्षा लेखक- श्रीकांत जोशी (भूमिका से)।
“मृगजल के गुंतारे” सुंदर, गठीले, विरल और व्यक्तित्व– दीप्त गीतों का संग्रह है. पहला ही गीत कवि की क्षमता को प्रमाणित करता है, इसके अरूढ़ शब्द- प्रयोग गीत को, ‘गीत शिल्प को’ एवं गीतकार को, अपनी परच देते हैं। “खंतर”, “धरती की गहराई”, “ठाँय लुकुम हर अंतर की”, “बीज तमेसर बोये” जैसे प्रयोग लोक-लय का वरण कर गीत- ग्रहण को ललकीला बना सके हैं। संग्रह का “गूलर के फूल” टूटे सपनों का गीत है, पर कसे छंद और अनुभूति- सिद्ध भाषा से “थूकी भूल” को भूलने नहीं देता। ऐसे कई गीत हैं।
बाह्य सूत्र[]
- मृगजल के गुंतारे श्रीकांत जोशी (भूमिका से)।