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२०१६ में प्रकाशित फटे पाँवों में महावर संजय शुक्ल  का पहला नवगीत संग्रह है। इसमें कुल ६८ गीत है। इसके प्रकाशक हैं- अनुभव प्रकाशन, गाजियाबाद, मूल्य है  २५० रुपये और इसमें  १०४ पृष्ठ हैं।

फटे पाँवों में महावर के गीतों को पढ़ते हुए संजय शुक्ल की विषयगत विविधता का पता चलता है। रचनाएँ दैनिक जीवन से विषय लेकर बड़ी सहजता से नवगीत में ढल गयी लगती हैं जो कवि के सूक्ष्म-प्रेक्षण और घटनाओं के गहन विश्लेषण को दर्शाती हैं। पारिवारिक रिश्ते, बदलते सामाजिक मूल्य, वैश्वीकरण की संस्कृति, बाज़ारवाद और उपभोक्तावाद, निम्न और मध्यमवर्गीय व्यक्ति की इस दौर की विवशताएँ, राजनीति और अर्थनीति के जाल में जकड़े सामान्य-जन का कष्टमय जीवन जैसे विषय संग्रह के गीतों में संजय की सरल और सहज संप्रेषणीय शैली में व्यक्त हुए हैं। संग्रह का शीर्षक-गीत भी निर्माण कार्य से जुड़ी मजदूरिन की व्यथा की अभिव्यक्ति है जो श्रमशील रहते हुए और अपने दुःखों को भूलते हुए रुँधे कंठ से मंगल गाकर फटे हुए पाँवों में महावर रच रही है।

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