२०१६ में प्रकाशित जब से मन की नाव चली गोपाल कृष्ण भट्ट आकुल का पहला नवगीत संग्रह है। इसमें कुल गीत है। इसके प्रकाशक हैं- इसके प्रकाशक हैं- अनुष्टुप प्रकाशन १३ गायत्री नगर सोडाला जयपुर ३२४००६। मूल्य है १०० रुपये और इसमें १०८ पृष्ठ हैं।
यह सत्य है कि जब-जब दीप प्रज्वलित किया जाता है, 'तमस' उसके तल में आ ही जाता है किन्तु आराधना 'उजास' की ही की जाती है। इस मर्म को जान और समझकर रचनाकर्म में प्रवृत्त रहनेवाले साहित्य साधकों में वीर भूमि राजस्थान की शिक्षा नगरी कोटा के डॉ. गोपालकृष्ण भट्ट "आकुल" की कृति "जब मन की नाव चली" की रचनाएँ आश्वस्त करती हैं कि तमाम युगीन विसंगतियों पर उनके निराकरण के प्रयास और नव सृजन की जीजीविषा भारी है।
कल था मौसम बौछारों का / आज तीज औ' त्योहारों का
रंग-रोगन बन्दनवारों का / घर-घर जा बंजारन नित
इक नवगीत सुनाती जाए।
बाह्य सूत्र[]
- जब से मन की नाव चली संग्रह और संकलन पर आचार्य संजीव वर्मा सलिल समीक्षा के लिये देखें।