2024 में प्रकाशित, 'एक अकेला पहिया', रचनाकार- अवनीश सिंह चौहान का द्वितीय नवगीत संग्रह है। इसके प्रकाशक हैं— प्रकाश बुक डिपो (बरेली, उ.प्र.), और 112 पृष्ठ की इस पुस्तक का मूल्य 250/- रूपये है।
अवनीश जी की कहन भंगिमाओं में मानवता की पुख्ता जमीन दिखाई देती है, किंतु उस पर उग आए विरोधाभासी कैक्टसों के विरुद्ध उनकी आवाज भी दर्ज है। अधिकांश नवगीतों का स्वर व्यंग्यात्मक है, जिसके पीछे लक्ष्यार्थ झलकता है। संग्रहीत रचनाओं से देश-समाज का कोई भी परिदृश्य छूटा नहीं है। वहाँ शैक्षिक जगत, आभासी दुनिया, राजनीतिक व्यवस्था, स्त्री-विमर्श और प्रेम-प्रकृति आदि के विसंगत व्यापार हैं, जिसको कवि ने खुली आँखों से देखा है। ये नवगीत अंधकार को चीरते हैं और प्रकाश में कुछ अप्रस्तुत दिखलाते हैं। आपका एक नवगीत है— 'अँगुली के बल' — दुनिया का सारा इतिहास, सारे बही-खाते आदि सब इंटरनेट पर आ गए हैं। बस 'की बोर्ड' पर अँगुली चलाने की देर है। लेकिन अवनीश जी यह भी कहते हैं— "बातों से बातें निकलीं/ हल कोई कब निकला है" ('एक अकेला पहिया' : 47) और व्यस्तता इतनी कि "इंतजार करते-करते ही/ हार गयी मृगनैनी” (48)।
बाह्य सूत्र[]
- एक अकेला पहिया के बारे मेें वीरेंन्द्र आस्तिक के शब्द।