उत्तरायण साहित्य संस्थान की पत्रिकाउत्तरायण का पहला अंक १ जुलाई १९९६ को प्रकाशित हुआ था।
वर्ष २०११ तक इसके २६ अंक प्रकाशित हो चुके हैं। जिनमें कई विशेषांक सम्मिलित हैं। इसके संपादक निर्मल शुक्ल हैं।
स्वरूप[]
पत्रिका का स्वरूप अनियत कालीन है लेकिन प्रारंभ में यह त्रैमासिक रूप से प्रकाशित होती रही। उसमें 30 से ५० तक पृष्ठ होते थे तथा नवगीतों के अतिरिक्त गजल और छंदमुक्त को भी स्थान दिया जाता रहा है। जब इसके संयुक्तांक प्रकाशित हुए हैं तब इसके पृष्ठों की संख्या बढ़ी हैं और १३० तक पहुँची है।