२०१६ में प्रकाशित अम्मा रहती गाँव में डॉ. प्रदीप शुक्ल का पहला नवगीत संग्रह है। इसमें कुल ५१ गीत है। इसके प्रकाशक हैं- उत्तरायण प्रकाश लखनऊ। १२८ पृष्ठ की इस पुस्तक का मूल्य रु २५०/- है।
इस संग्रह के नवगीतों की भाषा आम-जन की समझ में आने वाली आम-फहम भाषा है, जिसमें बड़ी स्वाभाविकता है। इन नवगीतों को पढ़ते हुए साफ़ पता चलता है कि कवि अपनी जड़ों से गहरे तक जुड़ा हुआ है। इन्हें पढ़ते हुए लय और प्रवाह एक साथ गतिमान रहता है, कहीं कोई बाधा नहीं। कथ्य में भाव और विचार के स्पष्ट सम्प्रेषण में यह भाषा बहुत मददगार सिद्ध हुई है। भाषा को लेकर कोई आडम्बर डॉ शुक्ल के नवगीतों में देखने को नहीं मिलता। वह जरुरत के हिसाब से इन्टरनेट की भाषा को भी बहुत सहज तरीके से लेकर नवगीतों में लेकर आये हैं। संग्रह में ‘पाती तुम्हें भेजी हुई है’ और ‘इक्कीसवी सदी की लोरी’ जैसे नवगीत ऐसे ही कुछ नवीन प्रयोगों के बढ़िया उदाहरण हैं।
बाह्य सूत्र[]
- अम्मा रहतीं गाँव में संग्रह और संकलन पर राहुल देव की समीक्षा।