२००४ में प्रकाशित अब तक रही कुँवारी धूप निर्मल शुक्ल का पहला नवगीत संग्रह है। इसमें कुल ३२ गीत है। इसके प्रकाशक हैं— उत्तरायण प्रकाशन, लखनऊ। १०४ पृष्ठ की इस पुस्तक का मूल्य १५० रुपये है।
शुक्ल जी ने इन गीतों में प्रेम के धरातल पर विभिन्न ऋतुओं में विरह-मिलन, सुख-दुख, आशा-आकांक्षा के चित्र पूरी संवेदना के साथ उकेरे हैं। कवि को ‘नेहातुर अनुगंधों के रह-रह कर मिलने वाले आमंत्रण में' जीवन और प्रकृति अपने संपूर्ण सौन्दर्य और आवेग के साथ समुपस्थित है। 'अथ' में कवि ने अपने रचनात्मक सरोकरों को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि- "गीत की लयबद्धता, सहजता, रागात्मकता एवं गेयता की अरूणिमा से अनुप्राणित होकर... हमारे-आपके बीच से, प्रकृति के पारदर्श धरातल से, संवेदनाओं की अस्फुट ध्वनियों से, प्रचलित सामाजिक रीतियों से... समन्नत हुए ये स्वच्छन्द सुमन नितान्त स्वान्तः सुखाय तो कहे जा सकते है, किंतु समकालिक परिवेश में अनुभूतियों एवं अनुभवों के पारेषण से विलग नहीं।"
बाह्य सूत्र[]
- अब तक रही कुँवारी धूप कृष्ण शर्मा की समीक्षा।